: पूजा महेता
: प्रकृति प्रगीत माँ प्रकृति की सौंदर्य संहिता
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: Hindi
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'महामाया प्रकृति है ब्रह्माण्ड, ब्रह्माण्ड में जीवन जगत, 
माँ तेरे चरण रज कण चंदन, दिव्य पवित अंगो से है हम संभूत, 
विश्व गति माँ तेरे अंश किण्वन से, गंतव्य तेरा मूल चरित।



माँ प्रकृति सृष्टि में, मूल बीज रूपिणी, गर्भ धारिणी, व्याप है अनंत लोक में , 
फलीभूत मनुष, पंखी, किट - पतंग, मधुप इस बीज से, मनोहर रम्य निसर्ग रंगत,
कल्प करू में, अवनि पर मुग्धकर अरुणप्रिया शीत रजनी, तरुआश्रय में लीन धेनु गौरी।



मुझ मानव तन में उषा से संध्या तक, वसुधा से व्योम तक,
तेरा संचार, भू मंडल कुतूहल तेरे समाधित सारा, तू प्रसार जैव की स्वर्ग सेतु,
नभ में मेघधनूष तू, धरा सज्ज तेरे झरने, कृष, हरे रुक्ष से, नील जलधि जल से।



आत्मा का उद्गार, प्रथम सगुण प्रागट्य, उदार तू न्यौछावर किये रंग राग स्नेह हर लोक में,
मूल व्रुत्ति तू चित्त की, रस भाव तेरे तत्व से, संसार की दृष्टा तू, मेरी द्रष्टि अखिल अधिलोक में तू ,
सार विसार, मोह मुक्ति का साधन तू, जैसे तुंग निश्चल से उतरी रस प्रभाव तरंगिनी।



निहारु क्षीर सागर में डूबी मत्स्य जब, मर्म छवि उत्कट प्रवाह निर्ज़री में विहंग की,
अनंत शून्य व्योम से रविकिरण रिक्त हरी शिखरी वसुधा, कुसुम खिले बीज से, गिरे भू धूल में,
मैं ने जाना प्रकृति ही मनोवृत मेरा, प्रतिकृति हूँ में इस अंतहीन गंगा नीर की, महक अनुराधा की पुष्कर में। 
'