अध्याय 1
एक लड़की अपने पहले प्यार को कभी नहीं भूला पाती। लम्बे सुनहरे बाल, गहरी भूरी आँखे और हर बार अस्तबल में घुँसते ही उसके सचेत कान जो मेरे कदमों की आहट पर हरकत कर उठते थे। एक दशक तक मुझे हार्वी के सिवा किसी भी दुसरे नर में दिलचस्पी ही नहीं हुई। और क्यों हो भला, वह बड़े सब्र से दिन ढलने के वक्त मेरा इन्तज़ार जो करता था। वह मेरी दु:ख भरी दास्तान बड़े ही निष्पक्ष भाव से सुनता और फिर मुझे अस्तबल के बाहर की दुनिया की सैर कराता था। वहाँ मुझे पुरी आज़ादी महसूस होती थी।
जब उस चुड़ैल ने जो खुद को मेरी माँ कहती थी, उसकी हत्या की, तब मैं हफ्तों तक रोई और आखिरकार घर से भाग गई। हाँ, ये सच है कि उसने पुलिस को मेरे खिलाफ भड़काया और वे मुझे हवाई अड्डे से घसीटकर वापस घर ले आए। परन्तु मैंने भी उसे नहीं छोड़ा। हाँ, मैंने भी ऐसा ही कुछ किया। जिस दिन मैं अठारह साल की हुई और घर से बाहर कदम रखा, उस दिन मैंने अपने पिता को फोन किया और मेरे पालन-पोषण के लिए माँ को दिए जाने वाले आर्थिक सहायता को बंद करने को कहा।
ये उनके लिए सठीक सज़ा थी की मैंने उन्हें घर से बेदखल होते हुए देखा। क्योंकि उन्होंने मेरे हार्वी को उन्हे नापसंद करने के लिए मार डाला था।
शायद इसी को कर्मों का फल कहते हैं कि आज मुझे भी अपना घर खोना पड़ रहा था।
मैंने अपने आँसुओं को रोकते हुए, अपने जिन्दगी के"दुसरे महान प्यार" की मदद की जो मेरे बची-खूची वस्तुओं को उस अपार्टमेन्ट के बाहर ले जा रहा था जिसमें हम दोनों ने जिन्दगी के तीन साल गुज़ारे थे।
जैसे ही मेरे तकिये से भरा हरे रंग के कचरे का बैग उसके लम्बी-दुबली का़या से टकराया वह इस भांती गुरगुराया मानों वज़नदार सामान उठा रखा हो।
मैंने किताबों से लदी हुई मज़बूत दफ़त